शिव पुराण की कहानियाँ (Shiv Puran ki Kahaniya)
शिव पुराण की कहानियाँ (Shiv Puran ki Kahaniya)
स्रोत- शिव पुराण (Source- Shiv Puran)
सर्वप्रथम शिव पुराण परिचय :-
ज्ञान और वैराग्य-सहित भक्ति से प्राप्त होने वाले विवेक की वृद्धि के लिए एवं किसी प्रकार के काम-क्रोध आदि मानसिक विकारों के निवारण करने के लिए तथा असुर स्वभाव से जीव समुदाय को शुद्ध करने के लिए शिव पुराण / शिव महापुराण का पाठ करना अत्यंत फलदायी है। इसे कल्याणकारी वस्तुओ में सबसे उत्कृष्ट एवं परम मंगलकारी माना जाता है।
यह साधन ऐसा है जिसके अनुष्ठान से शीघ्र ही अंतःकरण की विशेष शुद्धि हो जाती है। शिव पुराण को पूर्व काल में भगवान् शिव ने ही प्रवचन किया था। इसके नियमित पाठ से निर्मल ह्रदय वाले पुरुष को सदा के लिए शिव की प्राप्ति हो जाती है।
शिव पुराण नामक ग्रन्थ 24000 (चौबीस हज़ार) श्लोकों से युक्त है। इसकी सात संहिताएं हैं। मनुष्य को चाहिए कि वह भक्ति, ज्ञान और वैराग्य से संपन्न हो बड़े आदर से इसका श्रवण एवं अध्ययन करे। सात संहिताओं से युक्त यह दिव्य शिव पुराण परब्रह्म परमात्मा के समान विराजमान है।
शिव पुराण की कहानियाँ, संख्या- 01
पूर्व की बात है किरातों के नगर में एक ब्राह्मण रहता था, जो ज्ञान में अत्यंत दुर्बल, दरिद्र, रस बेचने वाला तथा वैदिक धर्म से विमुख था। वह स्नान-संध्या आदि कर्मो से भ्रष्ट हो गया था और वैश्यवृति में तत्पर रहता था। उसका नाम देवराज था। वह अपने ऊपर विश्वास करने वाले लोगो को ठगा करता था। उसने ब्राह्मणो, क्षत्रियों, वैश्यों, शुद्रो, तथा दूसरों को भी अनेक बहाने से मारकर वह उनका धन हड़प लिया था परन्तु उस पापी का थोड़ा सा भी धन कभी धर्म के काम में नहीं लगा था। वह वेश्यागामी तथा सभी प्रकार के आचार-भ्रष्ट था।
एक दिन घूमता-घामता वह दैवयोग से प्रतिष्ठानपुर (झूसी-प्रयाग) में जा पहुँचा। वहां उसने एक शिवालय देखा, जहाँ बहुत-से साधु-महात्मा एकत्र हुए थे। देवराज उस शिवालय में ठहर गया, किन्तु वहां उस ब्राह्मण को ज्वर आ गया. उस ज्वर से उसको बड़ी पीड़ा होने लगी। वहां एक ब्राह्मण देवता शिव पुराण की कथा सुना रहे थे। ज्वर में पड़ा हुआ देवराज ब्राह्मण के सुखार्विन्द से निकली हुई उस शिव कथा को निरंतर सुनता रहा। एक मास के बाद वह ज्वर से अत्यंत पीड़ित होकर चल बसा। यमराज के दूत आएं और उसे पाशो से बांधकर बलपूर्वक यमपुरी ले गए। इतने में ही शिवलोक से भगवान् शिव के पार्षदगण आ गए। उनके गौर अंग (स्वेत अंग) कपूर के समान उज्जवल थे, हाथ त्रिशूल से सुशोभित हो रहे थे, उनके सम्पूर्ण अंग भस्म से उद्धासित थे और रुद्राक्ष की मालाएँ उनके शरीर की शोभा बढ़ा रही थी। वे सब-के-सब क्रोधपूर्वक यमपुरी में गए और यमराज के दूतों को मारपीटकर, बारम्बार धमकाकर उन्होंने देवराज को उनके चंगुल से छुड़ा लिया और अत्यंत अद्भुत विमान पर बिठाकर जब वे शिवदूत कैलाश जाने को उद्यत हुए, उस समय यमपुरी में बड़ा कोलाहल मच गया। उस कोलाहल को सुनकर धर्मराज अपने भवन से बाहर आये। साक्षात् दूसरे रुद्रों के समान प्रतीत होनेवाले उन चारो दूतों को देखकर धर्मज्ञ धर्मराज उनका विधिपूर्वक पूजन किया और ज्ञानदृष्टि से देखकर सारा वृतांत जान लिया। उन्होंने भय के कारण भगवान शिव के उन महात्मा दूतों से कोई बात नहीं पूछी, उलटे उन सबकी पूजा एवं प्रार्थना की। तत्पश्चात वे शिवदूत चले गए और वहां पहुंचकर उन्होंने उस ब्राह्मण को दयासागर साम्ब शिव के हाथों में दे दिया।
Har Har Mahadev
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