Monday, December 16, 2019

शिव पुराण की कहानियाँ, संख्या- 02

शिव पुराण की कहानियाँ (Shiv Puran ki Kahaniya)


शिव पुराण की कहानियाँ (Shiv Puran ki Kahaniya)



स्रोत- शिव पुराण (Source- Shiv Puran)

शिव पुराण की कहानियाँ        

                   

शिव पुराण की कहानियाँ, संख्या- 02

नोट- यह एक गोपनीय शिव पुराण की कथा (कहानी) है-  कृपया एक बार प्रेम से बोले "भगवान शंकर- भोलेनाथ की जय"।   

                       समुन्द्र के निकटवर्ती प्रदेश में एक वास्कल नामक ग्राम था, जहाँ वैदिक धर्म से विमुख महापापी द्विज निवास करते थे। वे सब-के-सब बड़े दुष्ट थे, उनका मन दूषित विषय भोगों में ही लगा रहता था। वे न देवताओं पर विश्वास करते थे न भाग्य पर; वे सभी कुटिल वृत्तिवाले थें। किसानी करते और भाँति-भाँति के घातक अस्त्र-शस्त्र रखते थें। वे व्यभिचारी और खल थें। ज्ञान, वैराग्य तथा सद्धर्म का सेवन ही मनुष्य के लिए पुरुषार्थ होता है -- इस बात को वे बिलकुल नहीं जानते थे। वे सभी पशुबुद्धिवाले थें।  (जहाँ द्विज ऐसे हों, वहाँ के अन्य वर्णों के विषय में क्या कहा जाय।) अन्य वर्णों के लोग भी उन्हीं की भाँति कुत्सित विचार रखनेवाले, स्वधर्म विमुख एवं खल थें; वे विषयभोगों में ही डूबे रहते थें। वहां की सब स्त्रियाँ भी कुटिल स्वभाव की स्वेच्छाचारिणी, पापासक्त, कुत्सित विचारवाली और व्यभिचारिणी थीं। वे सद्व्यवहार तथा सदाचार से सर्वथा शून्य हैं। इस प्रकार वहां दुष्टों का ही निवास था। 

                      उस वास्कल नामक ग्राम में किसी समय एक बिंदुग नामधारी ब्राह्मण रहता था, वह बड़ा अधर्मी था। दुरात्मा और महापापी था। यद्यपि उसकी स्त्री बड़ी सुन्दर थी, तो भी वह कुमार्ग पर ही चलता था। उसकी पत्नी का नाम चंचला था; वह सदा उत्तम धर्म के पालन में लगी रहती थी, तो भी उसे छोड़कर वह दुष्ट ब्राह्मण वेश्यागामी हो गया था। इस तरह कुकर्म में लगे हुए उस बिन्दुग के बहुत वर्ष व्यतीत हो गए। उसकी स्त्री काम से पीड़ित होने पर भी स्वधर्मनाश के भय से क्लेश सहकर भी दीर्घकाल तक धर्म से भ्रष्ट नहीं हुई। परन्तु दुराचारी पति के आचरण से प्रभावित हो आगे चलकर वह स्त्री भी दुराचारिणी हो गयी। 

                        इस तरह दुराचार में डूबे हुए उन गूढ़ चित्तवाले पति-पत्नी का बहुत-सा समय व्यर्थ बीत गया।  तदन्तर शूद्रजातीय वेश्या का पति बना हुआ वह दूषित बुद्धिवाला दुष्ट ब्राह्मण बिन्दुग समयानुसार मृत्यु को प्राप्त हो नरक में जा पड़ा। बहुत दिनों तक नरक के दुःख भोगकर वह वह गूढ़ बुद्धि पापी विंध्य पर्वत पर भयंकर पिशाच हुआ।  इधर दुराचारी पति बिन्दुग के मर जाने पर वह मूढ़ हृदया चंचला बहुत समय तक पुत्रों के साथ अपने घर में ही रही। 
                               एक दिन दैवयोग से किसी पुण्य पर्व के आने पर वह स्त्री भाई-बंधुओं के साथ गोकर्ण-क्षेत्र में गयी। तीर्थयात्रिओं के संग से उसने भी उस समय जाकर किसी तीर्थ के जल में स्नान किया। फिर वह साधारणतया (मेला देखने की दृष्टि से) बंधू जनों के साथ यत्र-तत्र घूमने लगी। घूमती-घामती किसी देवमंदिर में गयी और वहां उसने एक दैवज्ञ ब्राह्मण के मुख से भगवान् शंकर (शिव) की परम पवित्र एवं मंगलकारिणी उत्तम पौराणिक कथा सुनी। कथावाचक ब्राह्मण कह रहे थे की 'जो स्त्रियाँ पर पुरुषों के साथ व्यभिचार करती है, वे मरने के बाद जब यमलोक में जाती हैं, तब यमराज के दूत उनकी योनि में तपे हुए लोहे का परिध डालते हैं। पौराणिक ब्राह्मण के मुख से यह वैराग्य बढ़ानेवाली कथा सुनकर चंचला भय से व्याकुल होकर वहां काँपने लगी।  जब कथा समाप्त हुई और सुननेवाले सब लोग वहां से बाहर चले गए, तब वह भयभीत नारी एकांत में शिवपुराण की कथा वाचनेवाले उन ब्राह्मण देवता से बोली। 
                             चंचला ने कहा -- ब्रह्मण! मैं अपने धर्म को नहीं जानती थी। इसलिए मेरे द्वारा बड़ा दुराचार हुआ है। स्वामिन्! मेरे ऊपर अनुपम कृपा करके आप मेरा उद्धार कीजिये। आज आपके वैराग्य-रस से ओतप्रोत इस प्रवचन को सुनकर मुझे बड़ा भय लग रहा है। मैं काँप उठी हूँ और मुझे इस संसार से वैराग्य हो गया है। मुझ मूढ़ चित्तवाली पापिनी को धिक्कार है। मैं सर्वथा निंदा के योग्य हूँ। कुत्सित विषयों में फँसी हुई हूँ और अपने धर्म से विमुख हो गयी हूँ। हाय! न जाने किस-किस घोर कष्टदायक दुर्गति में मुझे पड़ना पड़ेगा और वहां कौन बुद्धिमान पुरुष कुमार्ग में मन लगानेवाली मुझ पापिनी का साथ देगा। मृत्युकाल में उन भयंकर यमदूतों को मैं कैसे देखूंगी? जब वे बलपूर्वक मेरे गले में फंदे डालकर मुझे बांधेगे, तब मैं कैसे धीरज धारण कर सकूँगी। नरक में जब मेरे शरीर के टुकड़े-टुकड़े किये जायेंगे, उस समय विशेष दुःख देनेवाली उस महायातना को मैं वहां कैसे सहूँगी? हाय! मैं मारी गयी! क्योंकि मैं हर तरह के पाप में डूबी रही हूँ।  ब्रह्मन ! आप ही मेरे गुरु, आप ही माता और आप ही पिता हैं।  आपकी शरण में आयी हुई मुझ दीन अबला का आप ही उद्धार कीजिये, उद्धार कीजिये। 
                               इसप्रकार खेद और वैराग्य से युक्त हुई चंचला ब्राह्मण देवता के दोनों चरणों में गिर पड़ी। तब उन बुद्धिमान ब्राह्मण ने कृपापूर्वक उसे उठाया और इस प्रकार कहा ---------

चंचला की प्रार्थना से ब्राह्मण का उसे पूरा शिव पुराण सुनाना और समयानुसार शरीर छोड़कर शिवलोक में जा चंचला का माँ पार्वती जी की सखी एवं सुखी होना, अगले अंक में पढ़े ----------

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