सर्वप्रथम शिव पुराण परिचय, शिव पुराण की कहानियाँ, संख्या- 01
शिव पुराण की कहानियाँ, संख्या- 02 में आगे
जो वास्तव में
शिव पुराण की कहानियाँ, संख्या- 03 है :-
चंचला की प्रार्थना से ब्राह्मण का उसे पूरा शिव पुराण सुनाना और समयानुसार शरीर छोड़कर शिवलोक में जा चंचला का माँ पार्वती जी की सखी एवं सुखी होना -
ब्राह्मण बोले- नारी! सौभाग्य की बात है कि भगवान् शंकर (शिव) की कृपा से शिव पुराण की इस वैराग्य युक्त कथा को सुनकर तुम्हें समय पर चेत हो गया है। ब्राह्मण पत्नी! तुम डरो मत। भगवान् शिव की शरण में जाओ। शिव की कृपा से सारा पाप तत्काल नष्ट हो जाता है। मैं तुमसे भगवान् शिव की कीर्ति कथा (कहानियाँ) से युक्त उस परम वस्तु का वर्णन करूँगा, जिससे तुम्हें सदा सुख देने वाली उत्तम गति प्राप्त होगी। शिव की उत्तम कथा (कहानियाँ) सुनने से ही तुम्हारी बुद्धि इस तरह पश्चाताप से युक्त एवं शुद्ध हो गयी है। साथ ही तुम्हारे मन में विषयों के प्रति वैराग्य हो गया है। पश्चाताप ही पाप करने वाले पापियों के लिए सबसे बड़ा प्रायश्चित है। सत्पुरुषों ने सब के लिए पश्चाताप को ही समस्त पापों का शोधक बताया है, पश्चाताप से ही पापों की शुद्धि होती है। जो पश्चाताप करता है, वही वास्तव में पापों का प्रायश्चित करता है; क्योंकि सत्पुरुषों ने समस्त पापों की शुद्धि के लिए जैसे प्रायश्चित का उपदेश किया है, वह सब पश्चाताप से संपन्न हो जाता है। जो पुरुष विधिपूर्वक प्रायश्चित करके निर्भय हो जाता है, पर अपने कुकर्म के लिए पश्चाताप नहीं करता, उसे प्रायः उत्तम गति नहीं प्राप्त होती। परन्तु जिसे अपने कुकृत्य पर हार्दिक पश्चाताप होता है, वह अवश्य उत्तम गति का भागी होता है, इसमें संशय नहीं। इस शिव पुराण की कथा सुनने से जैसी चित्तशुद्धि होती है, वैसी दूसरे उपायों से नहीं होती। जैसे दर्पण साफ करने पर निर्मल हो जाता है, उसी प्रकार इस शिव पुराण की कथा से चित अत्यंत शुद्ध हो जाता है-- इसमें संशय नहीं है। मनुष्यों के शुद्ध चित में जगदम्बा पार्वती-सहित भगवान् शिव विराजमान रहते हैं। इससे वह विशुद्धात्मा पुरुष श्रीसाम्ब सदाशिव के पद को प्राप्त होता है। इस उत्तम कथा का श्रवण समस्त मनुष्यों के लिए कल्याण का बीज है। अतः यथोचित (शास्त्रोक्त) मार्ग से इसकी आराधना अथवा सेवा करनी चाहिए। यह भव बंधन रूपी रोग का नाश करनेवाली है। भगवान् शिव की कथा (कहानियाँ) को सुनकर फिर अपने ह्रदय में उसका मनन एवं निदिध्यासन करना चाहिए। इससे पूर्णतया चित शुद्धि हो जाती है। चित शुद्धि होने से महेश्वर की भक्ति अपने दोनों पुत्रों (ज्ञान एवं वैराग्य) के साथ निश्चय ही प्रकट होती है। तत्पश्चात महेश्वर के अनुग्रह से दिव्य मुक्ति प्राप्त होती है, इसमें संशय नहीं है। जो मुक्ति से वंचित है, उसे पशु समझना चाहिए; क्योंकि उसका चित माया के बंधन से आसक्त है। वह निश्चय ही संसार बंधन से मुक्त नहीं हो पाता।
ब्राह्मण-पत्नी! इसलिए तुम विषयों से मन को हटा लो और भक्ति भाव से भगवान् शंकर (शिव) की इस परम पावन कथा को सुनो--- परमात्मा शंकर (शिव) की इस कथा को सुनने से तुम्हारे चित की शुद्धि होगी और इससे तुम्हें मोक्ष की प्राप्ति हो जाएगी। जो निर्मल चित से भगवान् शिव के चरणारविन्दों का चिंतन करता है, उसकी एक ही जन्म में मुक्ति हो जाती है-- यह मैं तुमसे सत्य-सत्य कहता हूँ।
इतना कहकर वे श्रेष्ठ शिव भक्त ब्राह्मण चुप हो गए। उनका ह्रदय करुणा से आर्द्र हो गया था। वे शुद्ध चित महात्मा भगवान् शिव के ध्यान में मग्न हो गए। तदंतर बिन्दुग की पत्नी चंचला मन-ही-मन प्रसन्न हो उठी। ब्राह्मण का उक्त उपदेश सुनकर उसके नेत्रों में आनंद के आंसू छलक आये थे। वह ब्राह्मण पत्नी चंचला हर्ष भरे हृदय से उन श्रेष्ठ ब्राह्मण के दोनों चरणों में गिर पड़ी और हाथ जोड़कर बोली--- मैं कृतार्थ हो गयी। तत्पश्चात उठकर वैराग्य युक्त उत्तम बुद्धि वाली स्त्री, जो आने पापों के कारण आतंकित थी, वह महान शिव-भक्त ब्राह्मण से हाथ जोड़कर बोली।
चंचला ने कहा--- ब्राह्मण! शिव भक्तो में श्रेष्ठ! स्वामिन! आप धन्य है, परमार्थदर्शी हैं और सदा परोपकार में लगे रहते हैं। इसलिए श्रेष्ठ साधु पुरुषों में प्रशंसा के योग्य हैं|साधो! मैं नरक के समुद्र में गिर रही हूँ|आप मेरा उद्धार कीजिए, उद्धार कीजिए| पुरानी अर्थतत्व से संपन्न, जिस सुंदर शिव पुराण की कथा (कहानियाँ) को सुनकर मेरे मन में संपूर्ण विषयों से वैराग्य उत्पन्न हो गया है, उसी इस शिव पुराण को सुनने के लिए इस समय मेरे मन में बड़ी श्रद्धा हो रही है|
ऐसा कह हाथ जोड़कर उनका अनुग्रह पाकर चंचला शिवपुराण की कथा (कहानियाँ) को सुनने की इच्छा मन में लिए उस ब्राह्मण देवता की सेवा में तत्पर हो वहां रहने लगी| तदनंतर शिव भक्तों में श्रेष्ठ शुद्ध बुद्धि वाले उस ब्राह्मण देव ने उसी स्थान पर उस स्त्री को शिव पुराण की उत्तम कथा (कहानियाँ) सुनायी| इस प्रकार गोकर्ण नामक उस महाक्षेत्र में उन्हीं श्रेष्ठ ब्राह्मण से उसने शिव पुराण की वह परम् पावन कथा (कहानियाँ) सुनी, जो भक्ति, ज्ञान एवं वैराग्य को बढ़ाने वाली एवं मुक्ति देने वाली है| इस उत्तम कथा को सुनकर वह ब्राह्मण पत्नी अत्यंत कृतार्थ हो गई| उसका चित शीघ्र ही शुद्ध हो गया| फिर भगवान शिव के अनुग्रह से उसके हृदय में भगवान शिव के सगुण रूप का चिंतन होने लगा| इस प्रकार उसने भगवान शिव में लगी रहने वाली उत्तम बुद्धि पाकर शिव के सच्चिदानंद मय स्वरूप का बारंबार चिंतन आरंभ किया| तत्पश्चात समय के पूरे होने पर वह भक्ति, ज्ञान एवं वैराग्य से युक्त चंचला ने बिना किसी कष्ट के अपना शरीर त्याग दिया! इतने में ही भगवान् त्रिपुराज भगवान् शिव का भेजा हुआ द्रुत विमान वहां पहुंचा जो उनके अपने गणों से संयुक्त एवं भांति- भांति के शोभा साधनों से संपन्न था| चंचला उस विमान पर आरूढ़ हुई और भगवान शिव के श्रेष्ठ पार्षदों ने उसे तत्काल शिवपुरी पहुंचा दिया| उसके सारे मल धुल गए थे| वह दिव्य रूप धारिणी दिव्यांगना हो गई थी| उसके दिव्य अवयव की शोभा बढ़ाते थे| मस्तक पर अर्धचंद्र का मुकुट धारण किए वह गौरांगी देवी शोभाशाली दिव्य आभूषणों से विभूषित थी| शिवपुरी पहुंचकर उसने सनातन देवता त्रिनेत्रधारी भगवान महादेवजी को देखा| सभी मुख्य मुख्य देवता उनकी सेवा में खड़े थे| भगवान गणेश, नंदीश्वर, भृंगी तथा वीर भद्रेश्वर आदि उनकी सेवा में उत्तम भक्ति भाव से उपस्थित थे| उनके अंगकांति करोड़ों सुर्यों के समान प्रकाशित हो रही थी| कंठ में नील चिन्ह शोभा पाता था (भगवान शिव-शंकर को त्रिनेत्रधारी, नीलकंठ, महादेव, देवों के देव भी कहा जाता है)| पांच मुख एवं प्रत्येक मुख में तीन-तीन नेत्र थें| मस्तक पर अर्धचंद्राकार मुकुट शोभा देता था| उन्होंने अपने बामांग भाग में मां गौरी को बिठा रखा था, जो विद्युत् मुख के समान प्रकाशित थीं| मां गौरा पति महादेवजी के कांति कपूर की भांति गौर थी| उनका सारा शरीर श्वेत भस्म से भाषित था| शरीर पर श्वेत वस्त्र शोभा पा रहे थे|इस प्रकार परम् उज्जवल भगवान शंकर (शिव) का दर्शन करके वह ब्राह्मण पत्नी चंचला अत्यंत प्रसन्न हुई|अत्यंत प्रीति युक्त बड़ी उतावली होकर वह भगवान शंकर (शिव) को बारंबार प्रणाम की| फिर हाथ जोड़कर बड़े प्रेम, आनंद एवं संतोष के साथ विनीतभाव से खड़ी हो गई| उसके नेत्रों से आनंद अश्रुओं की अविरल धारा बहने लगी तथा संपूर्ण शरीर में रोमांच हो गया| उस समय मां भगवती पार्वती एवं भगवान शंकर ने उसे बड़ी करुणा के साथ अपने पास बुलाया और सौम्य दृष्टि से उसकी ओर देखा| मां पार्वती ने तो दिव्यरूप धारिणी बिंदुगप्रिया चंचला को प्रेमपूर्वक अपनी सखी बना लिया| वह उस परमानंदवन ज्योति स्वरूप सनातन धाम में अविचल निवास पाकर दिव्य सौख्य से संपन्न हो अक्षय सुख का अनुभव करने लगी|
---(यह अध्याय समाप्त)---
अगले अध्याय में :- चंचला के प्रयत्न से मां पार्वतीजी की आज्ञा से तुम्बुरू का विंध्य पर्वत पर शिव पुराण की कथा (कहानियाँ) सुनाकर बिंदुग को पिशाच योनि से उद्धार करना तथा उन दोनों दंपति का शिव धाम में सुखी होना
ब्राह्मण-पत्नी! इसलिए तुम विषयों से मन को हटा लो और भक्ति भाव से भगवान् शंकर (शिव) की इस परम पावन कथा को सुनो--- परमात्मा शंकर (शिव) की इस कथा को सुनने से तुम्हारे चित की शुद्धि होगी और इससे तुम्हें मोक्ष की प्राप्ति हो जाएगी। जो निर्मल चित से भगवान् शिव के चरणारविन्दों का चिंतन करता है, उसकी एक ही जन्म में मुक्ति हो जाती है-- यह मैं तुमसे सत्य-सत्य कहता हूँ।
इतना कहकर वे श्रेष्ठ शिव भक्त ब्राह्मण चुप हो गए। उनका ह्रदय करुणा से आर्द्र हो गया था। वे शुद्ध चित महात्मा भगवान् शिव के ध्यान में मग्न हो गए। तदंतर बिन्दुग की पत्नी चंचला मन-ही-मन प्रसन्न हो उठी। ब्राह्मण का उक्त उपदेश सुनकर उसके नेत्रों में आनंद के आंसू छलक आये थे। वह ब्राह्मण पत्नी चंचला हर्ष भरे हृदय से उन श्रेष्ठ ब्राह्मण के दोनों चरणों में गिर पड़ी और हाथ जोड़कर बोली--- मैं कृतार्थ हो गयी। तत्पश्चात उठकर वैराग्य युक्त उत्तम बुद्धि वाली स्त्री, जो आने पापों के कारण आतंकित थी, वह महान शिव-भक्त ब्राह्मण से हाथ जोड़कर बोली।
चंचला ने कहा--- ब्राह्मण! शिव भक्तो में श्रेष्ठ! स्वामिन! आप धन्य है, परमार्थदर्शी हैं और सदा परोपकार में लगे रहते हैं। इसलिए श्रेष्ठ साधु पुरुषों में प्रशंसा के योग्य हैं|साधो! मैं नरक के समुद्र में गिर रही हूँ|आप मेरा उद्धार कीजिए, उद्धार कीजिए| पुरानी अर्थतत्व से संपन्न, जिस सुंदर शिव पुराण की कथा (कहानियाँ) को सुनकर मेरे मन में संपूर्ण विषयों से वैराग्य उत्पन्न हो गया है, उसी इस शिव पुराण को सुनने के लिए इस समय मेरे मन में बड़ी श्रद्धा हो रही है|
ऐसा कह हाथ जोड़कर उनका अनुग्रह पाकर चंचला शिवपुराण की कथा (कहानियाँ) को सुनने की इच्छा मन में लिए उस ब्राह्मण देवता की सेवा में तत्पर हो वहां रहने लगी| तदनंतर शिव भक्तों में श्रेष्ठ शुद्ध बुद्धि वाले उस ब्राह्मण देव ने उसी स्थान पर उस स्त्री को शिव पुराण की उत्तम कथा (कहानियाँ) सुनायी| इस प्रकार गोकर्ण नामक उस महाक्षेत्र में उन्हीं श्रेष्ठ ब्राह्मण से उसने शिव पुराण की वह परम् पावन कथा (कहानियाँ) सुनी, जो भक्ति, ज्ञान एवं वैराग्य को बढ़ाने वाली एवं मुक्ति देने वाली है| इस उत्तम कथा को सुनकर वह ब्राह्मण पत्नी अत्यंत कृतार्थ हो गई| उसका चित शीघ्र ही शुद्ध हो गया| फिर भगवान शिव के अनुग्रह से उसके हृदय में भगवान शिव के सगुण रूप का चिंतन होने लगा| इस प्रकार उसने भगवान शिव में लगी रहने वाली उत्तम बुद्धि पाकर शिव के सच्चिदानंद मय स्वरूप का बारंबार चिंतन आरंभ किया| तत्पश्चात समय के पूरे होने पर वह भक्ति, ज्ञान एवं वैराग्य से युक्त चंचला ने बिना किसी कष्ट के अपना शरीर त्याग दिया! इतने में ही भगवान् त्रिपुराज भगवान् शिव का भेजा हुआ द्रुत विमान वहां पहुंचा जो उनके अपने गणों से संयुक्त एवं भांति- भांति के शोभा साधनों से संपन्न था| चंचला उस विमान पर आरूढ़ हुई और भगवान शिव के श्रेष्ठ पार्षदों ने उसे तत्काल शिवपुरी पहुंचा दिया| उसके सारे मल धुल गए थे| वह दिव्य रूप धारिणी दिव्यांगना हो गई थी| उसके दिव्य अवयव की शोभा बढ़ाते थे| मस्तक पर अर्धचंद्र का मुकुट धारण किए वह गौरांगी देवी शोभाशाली दिव्य आभूषणों से विभूषित थी| शिवपुरी पहुंचकर उसने सनातन देवता त्रिनेत्रधारी भगवान महादेवजी को देखा| सभी मुख्य मुख्य देवता उनकी सेवा में खड़े थे| भगवान गणेश, नंदीश्वर, भृंगी तथा वीर भद्रेश्वर आदि उनकी सेवा में उत्तम भक्ति भाव से उपस्थित थे| उनके अंगकांति करोड़ों सुर्यों के समान प्रकाशित हो रही थी| कंठ में नील चिन्ह शोभा पाता था (भगवान शिव-शंकर को त्रिनेत्रधारी, नीलकंठ, महादेव, देवों के देव भी कहा जाता है)| पांच मुख एवं प्रत्येक मुख में तीन-तीन नेत्र थें| मस्तक पर अर्धचंद्राकार मुकुट शोभा देता था| उन्होंने अपने बामांग भाग में मां गौरी को बिठा रखा था, जो विद्युत् मुख के समान प्रकाशित थीं| मां गौरा पति महादेवजी के कांति कपूर की भांति गौर थी| उनका सारा शरीर श्वेत भस्म से भाषित था| शरीर पर श्वेत वस्त्र शोभा पा रहे थे|इस प्रकार परम् उज्जवल भगवान शंकर (शिव) का दर्शन करके वह ब्राह्मण पत्नी चंचला अत्यंत प्रसन्न हुई|अत्यंत प्रीति युक्त बड़ी उतावली होकर वह भगवान शंकर (शिव) को बारंबार प्रणाम की| फिर हाथ जोड़कर बड़े प्रेम, आनंद एवं संतोष के साथ विनीतभाव से खड़ी हो गई| उसके नेत्रों से आनंद अश्रुओं की अविरल धारा बहने लगी तथा संपूर्ण शरीर में रोमांच हो गया| उस समय मां भगवती पार्वती एवं भगवान शंकर ने उसे बड़ी करुणा के साथ अपने पास बुलाया और सौम्य दृष्टि से उसकी ओर देखा| मां पार्वती ने तो दिव्यरूप धारिणी बिंदुगप्रिया चंचला को प्रेमपूर्वक अपनी सखी बना लिया| वह उस परमानंदवन ज्योति स्वरूप सनातन धाम में अविचल निवास पाकर दिव्य सौख्य से संपन्न हो अक्षय सुख का अनुभव करने लगी|
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स्रोत- शिव पुराण (Source- Shiv Puran)
अगले अध्याय में :- चंचला के प्रयत्न से मां पार्वतीजी की आज्ञा से तुम्बुरू का विंध्य पर्वत पर शिव पुराण की कथा (कहानियाँ) सुनाकर बिंदुग को पिशाच योनि से उद्धार करना तथा उन दोनों दंपति का शिव धाम में सुखी होना